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समि॑द्धो अग्न॒ आ व॑ह दे॒वाँ अ॒द्य य॒तस्रु॑चे। तन्तुं॑ तनुष्व पू॒र्व्यं सु॒तसो॑माय दा॒शुषे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samiddho agna ā vaha devām̐ adya yatasruce | tantuṁ tanuṣva pūrvyaṁ sutasomāya dāśuṣe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्ऽइ॑द्धः। अ॒ग्ने॒। आ। व॒ह॒। दे॒वान्। अ॒द्य। य॒तऽस्रु॑चे। तन्तु॑म्। त॒नु॒ष्व॒। पू॒र्व्यम्। सु॒तऽसो॑माय। दा॒शुषे॑ ॥ १.१४२.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:142» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब तेरह ऋचावाले एकसौ ब्यालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक और अध्येता के विषय को कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) पावक के समान उत्तम प्रकाशवाले (समिद्धः) विद्या से प्रकाशित पढ़ानेवाले विद्वन् ! आप (अद्य) आज के दिन (सुतसोमाय) जिसने बड़ी-बड़ी ओषधियों के रस निकाले और (यतस्रुचे) यज्ञपात्र उठाये हैं, उस यज्ञ करनेवाले (दाशुषे) दानशील जन के लिये (देवान्) विद्वानों की (आ, वह) प्राप्ति करो और (पूर्व्यम्) प्राचीनों के किये हुए (तन्तुम्) विस्तार को (तनुष्व) विस्तारो ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बालकपन और तरुण अवस्था में माता और पिता आदि सन्तानों को सुखी करें, वैसे पुत्रलोग ब्रह्मचर्य से विद्या को पढ़ युवावस्था को प्राप्त और विवाह किये हुए अपने माता-पिता आदि को आनन्द देवें ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकाध्येतृविषयमाह ।

अन्वय:

हे अग्ने पावक इव समिद्धो विद्वांस्त्वमद्य यतस्रुचे सुतसोमाय दाशुषे देवानावह पूर्व्यं तन्तुं तनुष्व ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (समिद्धः) विद्यया प्रदीप्तोऽध्यापकः (अग्ने) अग्निरिव सुप्रकाश (आ) (वह) प्रापय (देवान्) विदुषः (अद्य) अस्मिन् दिने (यतस्रुचे) उद्यतयज्ञपात्राय यजमानाय (तन्तुम्) विस्तारम् (तनुष्व) विस्तृणीहि (पूर्व्यम्) पूर्वैः कृतम् (सुतसोमाय) निष्पादितमहौषधिरसाय (दाशुषे) दात्रे ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा बाल्ययुवावस्थायां मातापित्रादयः सन्तानान् सुखयेयुस्तथा पुत्रा ब्रह्मचर्येणाधीत्य विद्यां प्राप्तयौवनाः कृतविवाहाः सन्तः स्वान्मातापित्रादीनानन्दयेयुः ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अध्यापक अध्येता यांचे गुण व विद्येची प्रशंसा असल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे बाल्यावस्थेत व तरुण अवस्थेत माता व पिता इत्यादी संतानांना सुखी करतात तसे संतानांनीही ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या शिकून युवावस्थेत विवाह करून आपले माता-पिता यांना आनंद द्यावा. ॥ १ ॥